राधिका यादव हत्याकांड: स्वप्नों की दुनिया से अँधकार की गलियों तक
23 मार्च २००० को जन्मी राधिका यादव हरियाणा की उभरती हुई टेनिस खिलाड़ी थीं। 23 मार्च २००० को गुरुग्राम में जन्मी राधिका ने अपने जीवन में कुछ ही वर्षों में असाधारण उपलब्धियाँ हासिल की थीं। उन्होंने स्कॉटिश हाई इंटरनेशनल स्कूल से पढ़ाई पूरी की और २०१८ में १२वीं कॉमर्स में सफलता पाई।
आज तक टेनिस की दुनिया में कदम रखते हुए वह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों में हिस्सा ले चुकी थीं। खोपी हुई कंधे की चोट के बावजूद उन्होंने अपनी लगन नहीं छोड़ी और ITF की महिला युगल रैंकिंग में 113वें स्थान तक पहुंचीं । इसके साथ ही वह हरियाणा की किशोरी वर्ग की अंडर-18 रैंकिंग में 75 वें स्थान पर भी रही थी ।
राधिका ने अपने खेल जीवन के दौरान कई ट्रॉफियां जीतीं और बाद में कोचिंग के क्षेत्र में कदम रखा। उसने गुरुग्राम में बिना अपना कोई स्टेडियम बनाए, विभिन्न लॉन में कोर्ट बुक कर युवा खिलाड़ियों को प्रशिक्षित करना शुरू किया । उस उम्र में इतनी जिम्मेदारी लेना, और वह भी अपने दम पर—ये ही राधिका की सबसे बड़ी पहचान थी।
हादसे की वह सुबह 10 जुलाई 2025 की सुबह लगभग 10:30 बजे का समय था, जब राधिका अपने गुरुग्राम के सेक्टर 57 स्थित घर में नाश्ता बना रही थी।
तभी उसके पिता, दीपक यादव ने अपने लाइसेंसी .32 बोर रिवॉल्वर से तीन से पाँच गोलियाँ चलाईं। शुरुआती रिपोर्ट में तीन गोलियाँ पीठ में लगने की बात कही गई थी, लेकिन पोस्टमार्टम के अनुसार इन गोलियों का निशाना उसका माथा एवं सामने का हिस्सा बताया गया—कुल चार गोलियाँ निकलीं ।
उसकी माँ मंजू यादव बुखार के कारण कमरे में थीं, और घटना की आवाज़ सुनते ही नीचे आईं। चाचा कुलदीप यादव और उनके बेटे मौके पर पहुंचे और राधिका को तुरंत अस्पताल ले गए, लेकिन डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया
अपराध की वजहें: परिवार में छिपा ज़हर
पुलिस के बयान के अनुसार, प्रमुख कारण बेटी की आर्थिक और सामाजिक स्वायत्तता थी। दीपक को गांव में राधिका यादव की कमाई पर लोगों के ताने सुनने पड़ रहे थे, जैसे कि “आप अपनी बेटी की कमाई खा रहे हो”, “तुम्हारी बेटी का चरित्र ठीक नहीं” आदि । दीपक स्वयं रेंटल आय पर निर्भर थे, लेकिन इन तानों ने उनके आत्मसम्मान को गहरा आघात पहुँचाया।
राधिका यादव ने सोशल मीडिया पर अपनी उपस्थिति मजबूत की—इंस्टाग्राम रील्स, कोचिंग क्लिप्स, एक म्यूज़िक वीडियो ‘कारवां’ में उनकी उपस्थिति—इन बातों से भी विवाद पैदा हुआ । ये सभी चीज़ें पिता के मन में असहजता बढ़ा गईं, और दीपक ने बेटी से अकादमी बंद करने की मांग की लेकिन राधिका सह नहीं मानी
उसने तीन दिनों से हत्या की योजना बनाई—पहले घर को खाली कराया, पिटबुल को बाहर बांधा, पत्नी और बेटे को सुरक्षित स्थान पर भेजा और फिर घटना को अंजाम दिया
गिरफ्तारी और आत्मसमर्पण
घटना के तुरंत बाद दीपक गिरफ्तार कर लिया गया। उसने अपने भाई को फोन पर “मैंने कन्या वध किया है” कहते हुए आत्मसमर्पण किया । कहा गया की वह “फांसी जुर्माना चाहता हूँ”—इससे अपराध की गंभीरता और पछतावा स्पष्ट होता है ।
जांच का दौर और वैधानिक कार्यवाही
स्थानीय पुलिस ने FIR दर्ज कर गहन जांच शुरू की। डिजिटल डिवाइस—मोबाइल फोन, इंस्टाग्राम अकाउंट—सब फॉरेंसिक विभाग के हवाले किए गए ताकि राधिका यादव की अतिरिक्त जानकारी हाथ लग सके। प्रारंभिक आशंकाओं में प्रेम संबंध या ‘लव जिहाद’ की बातें सामने आईं, लेकिन पुलिस ने इनका खंडन किया।
पोस्टमार्टम की रिपोर्ट ने पिता के दावे की पुष्टि और विरोध दोनों पहलुओं में सवाल खड़े किए; गोलियों की दिशा और संख्या को लेकर अस्पष्टता बनी हुई है । गिरफ्तारी के बाद दीपक की बेटी की हत्या पर आर्म्स एक्ट, परिवार हत्या आदि धाराओं के अंतर्गत मुकदमा दर्ज हुआ। वर्तमान में वह न्यायीय हिरासत में है । जांच अभी जारी है।
समाज में गूंजता प्रश्न
घटनास्थल पर मौजूद विडियो और सोशल मीडिया पोस्ट—जैसे कि राधिका यादवका गुप्त इंस्टाग्राम खाता और दोस्त हिमांशिका द्वारा कही गई बातें—एक ओर तकनीकी पहलु उजागर करते हैं, दूसरी ओर पारिवारिक तनाव और मानसिक दबाव की गंभीरता बतलाते हैं ।

सामाजिक रूप से इस कांड ने ‘ऑनर किलिंग’ और महिलाओं की आज़ादी पर सवाल उठाया। मुफ्त्नुकी सोच और पुरातन रूढ़ियाँ कितनी गहरी जड़ें जमा चुकी हैं यह घटना उसी का अंजाम प्रतीत होती है
प्रतिक्रिया और आगे का रास्ता
देशभर के खिलाड़ी और कोच राधिका यादव की शहादत पर शोक व्यक्त कर रहे हैं, और इस घटना को पतहन, परिवार और पुरुष वर्चस्व की बीमारी बताते हुए इसकी निंदा कर रहे हैं । WWE हॉल ऑफ़ फेमर ‘द ग्रेट खली’ ने ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ की सोच को अक्षुण्ण रखने की अपील की, और कहा कि मानसिकता में बदलाव ही इस समस्या का हल है ।
निष्कर्ष: क्या बदलेगा?
राधिका यादव का जीवन संघर्ष और उसकी हत्याकांड की गाथा भारत में महिलाओं की आज़ादी औऱ आकांक्षाओं पर सवाल खड़े करती है। केवल कानूनी कार्रवाई से इस समस्या का समाधान संभव नहीं—मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और पारिवारिक स्तर पर संवाद और परामर्श की आवश्यकता है। आने वाली पीढ़ियाँ ऐसी त्रासदियों से तभी बच सकती हैं जब माता-पिता और समाज खुले दिल से बेटियों की खुशियाँ और उपलब्धियों को स्वीकार करें।
यह लेख राधिका यादव की आत्मकथा नहीं, बल्कि उसकी याद और जर्वाई जिंदगी—उसके सपनों, संघर्षों और निर्दय अंत का चिंतन है। देश को जागना होगा, तभी बेटियों को वह मान-सम्मान और सुरक्षा उपलब्ध हो पाएगी जिसके वे सच्चे हकदार हैं।
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