मैथिली ठाकुर

मैथिली ठाकुर: संगीत से राजनीति तक — भारत की सबसे युवा विधायक

परिचय

मैथिली ठाकुर नाम सुनते ही ज्यादातर लोगों के मन में मधुर लोक-संगीत, पारंपरिक मैथिली धुनें और भारत के मिथिला संस्कृति की आत्मा की झलक उभरती है। लेकिन 2025 में उन्होंने सिर्फ संगीत की दुनिया में ही नहीं, राजनीति की पगडंडी पर भी कदम रखा। इस वर्ष के बिहार विधानसभा चुनाव में अलीनगर क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की उम्मीदवार बनीं और मात्र 25 वर्ष की आयु में विधायक बनकर इतिहास रच दिया।

प्रारंभिक जीवन और पारिवारिक पृष्ठभूमि

मैथिली ठाकुर का जन्म 25 जुलाई 2000 को बिहार के मधुबनी जिले (Benipatti) में हुआ था। ([Deccan Herald][2]) संगीत उनका परिवारिक धरोहर रहा है — उनका पिता और दादा उन्हें शास्त्रीय और लोक संगीत की बारीकियों का पाठ पढ़ाते थे।

बचपन में वे दिल्ली (नजफगढ़) चली गईं, जहां उनके परिवार ने एक कठिन आर्थिक दौर का सामना किया। तकरीबन दस सालों में उन्होंने 17 बार अपना ठिकाना बदला क्योंकि पड़ोसियों को उनका संगीत अभ्यास परेशान करता था। लेकिन उनकी संगीत से लगन कम नहीं हुई; उन्होंने हारमोनियम, तबला और गायन में गहरा अभ्यास किया।

संगीत का सफर — यूट्यूब से रियलिटी शो तक

मैथिली ठाकुर ने बहुत युवा अवस्था में संगीत की दुनिया में अपनी पहचान बनाई। उन्होंने मैथिली, भोजपुरी, हिंदी, अवधी, मगही जैसी भाषाओं में लोकगीत, भजन, राम–सीता विवाह गीत और शास्त्रीय संगीत गाया है।

उनकी शुरुआत टीवी रियलिटी शो से भी हुई —

उन्होंने Sa Re Ga Ma Pa Lil Champs और Indian Idol Junior जैसे शो में भाग लिया, हालांकि कुछ बार उन्हें अस्वीकार भी किया गया। ([The Times of India][5]) इसके बावजूद, उनका आत्मविश्वास घटा नहीं। 2016 में उन्होंने i Genius Young Singing Star प्रतियोगिता जीती और बाद में Rising Star में भी हिस्सा लिया, जहाँ वे उपविजेता रहीं।

उनकी लोकप्रियता डिजिटल प्लेटफार्म पर भी तेजी से बढ़ी। यूट्यूब, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर उनके संगीत वीडियो लाखों लोगों तक पहुंचे। उनके भाई — ऋशव और अयाची ठाकुर — भी उनके साथ मंच साझा करते हैं और एक संगीत-त्रिभुज की तरह काम करते हैं।

उनकी पारंपरिक मिथिला संस्कृति और कला को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता भी साफ नजर आती है — वे मधुबनी पेंटिंग जैसी सांस्कृतिक विरासत को लोक-संगीत के माध्यम से जन-चेतना का हिस्सा बनाती हैं।

संघर्ष और चुनौतियाँ

मैथिली ठाकुर के सफर में सिर्फ संगीत ही नहीं, व्यक्तिगत चुनौतियाँ भी थीं। उनके संगीत-प्रयासों के कारण परिवार को अस्थिरता झेलनी पड़ी। (कुछ समय उनके खिलाफ ताना-उपनाम भी लगे — उन्हें “बिहारी” कहकर चिढ़ाया गया, स्कूल में सहपाठियों ने उनकी प्रतिभा को कम करके देखा। और यहीं से उनकी दृढ़ता झलकती है — उन्होंने निराशा को प्रेरणा में बदल दिया। संगीत में उनकी मेहनत और ईमानदारी, साथ ही परिवार का समर्थन, उन्हें राजनीति की ओर ले गया।

राजनीति में प्रवेश — भाजपा से विधायक बनना

2025 के बिहार विधानसभा चुनाव के पहले, मैथिली ठाकुर ने भाजपा में शामिल होने का निर्णय लिया।भाजपा ने उन्हें अलीनगर विधानसभा क्षेत्र से अपना प्रत्याशी बनाया। चुनावkampf में उन्होंने विकास, शिक्षा और सांस्कृतिक उत्थान को अपनी प्राथमिकता बताया। खासकर उन्होंने मिथिला पेंटिंग को स्कूल पाठ्यक्रम में शामिल करने का प्रस्ताव रखा। इसके अलावा उन्होंने घोषणा की कि अगर चुनी गईं, तो वे अलीनगर का नाम बदलकर “सीतानगर” करना चाहती हैं यह उनके मिथिला-संस्कृति प्रेम और ऐतिहासिक पहचान को दर्शाता है।

चुनावों के परिणाम ने उनकी उम्मीदवारी को सही साबित किया: उन्होंने लगभग 11,730 वोटों से जीत हासिल की और 25 वर्ष की आयु में सबसे युवा बिहार विधायक (MLA) बन गईं।

उनकी विजयी भावनाएं और प्रतिक्रिया

  • विजय के बाद मैथिली ठाकुर ने मीडिया से कहा कि यह उनके लिए एक “सपने जैसा पल” है।
  • उन्होंने यह भी माना कि चुनाव के दौरान उन्हें बड़ी जिम्मेदारी की अनुभूति हुई, लेकिन अपने आप को “इस मिट्टी की बेटी” बताते हुए उन्होंने वादा किया है कि वह अपने क्षेत्र की सेवा करेंगी।
  • अपने भाषण में उन्होंने यह भरोसा जताया कि 25-साल की उम्र में भी वे उतनी ही तेजी और प्रभावी काम कर सकती हैं जितनी कोई अन्य सांसद या विधायक।
  • उनकी जीत ने खासकर युवा और महिलाओं के बीच एक नए राजनीतिक प्रतीक की तरह छवि बनाई है। उन्होंने यह दिखाया कि कला और युवाशक्ति राजनीति में कैसे मिलकर परिवर्तन ला सकती है।

चुनौतियाँ और आगे का रोडमैप

हालाँकि मैथिली ठाकुर की जीत बहुत प्रशंसनीय है, लेकिन राजनीतिक भूमिका निभाना हमेशा आसान नहीं होता। उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा विशेष रूप से विकास की जवाबदेही, सामाजिक अपेक्षाएँ और क्षेत्रीय विकास योजना के लागू होना।

उनकी घोषणाओं में मिथिला पेंटिंग को स्कूलों में पाठ्यक्रम में लाना और अलीनगर का नाम बदलना जैसे ऐतिहासिक मुद्दे हैं, लेकिन इन प्रस्तावों को जमीन पर कैसे उतारेंगी यह उनके लोकतांत्रिक करियर की अहम कसौटी होगी।

इसके अलावा शिक्षा, रोजगार और खासकर युवाओं तथा लड़कियों के लिए रोजगार सृजन उनकी विधानसभा क्षेत्र की प्रगति में बड़े फैक्टर होंगे। उनके पास यह मौका है कि वे सिर्फ सांस्कृतिक चेहरे न बनें, बल्कि विकास-उन्मुख विधायक भी साबित हो सकें।

मैथिली ठाकुर

सामाजिक और सांस्कृतिक महत्त्व

मैथिली ठाकुर की जीत सिर्फ एक राजनीतिक घटना नहीं है, बल्कि सांस्कृतिक पुनरुत्थान का भी संकेत है। वे मिथिला संस्कृति, लोक संगीत और पारंपरिक कलाओं की धरोहर को नए मंच पर ले आई हैं। उनकी युवा-छवि यह दिखाती है कि भारत में युवा पीढ़ी सिर्फ तकनीकी या आधुनिक विचारों में ही नहीं, बल्कि अपनी सांस्कृतिक जड़ों में भी गर्व महसूस करती है।

उनकी लोकप्रियता यह संदेश देती है कि राजनीति में युवा कलाकारों की भागीदारी सिर्फ वोट बैंक नहीं, बल्कि स्वाभिमान और जन-संवाद की एक नई शक्ति हो सकती है।

निष्कर्ष

मैथिली ठाकुर का जीवन और राजनैतिक सफर हमें यह प्रेरणा देता है कि उम्र सिर्फ एक संख्या है अगर दृष्टि, प्रतिबद्धता और कड़ी मेहनत हो, तो युवा भी बड़े बदलाव ला सकते हैं। संगीत की दुनिया में अपनी पहचान बना चुकी मैथिली ने यह दिखा दिया है कि समाज की सेवा और सांस्कृतिक संरक्षण दोनों में एक साथ योगदान किया जा सकता है।

25 साल की उम्र में विधायक बनते ही उनका सफर अभी शुरू हुआ है। अब समाज और उनके समर्थकों की निगाहें इस बात पर होंगी कि वह अपने वादों को कैसे पूरा करें, अपने विधानसभा क्षेत्र को कैसे बदले और मिथिला के सांस्कृतिक और विकासात्मक सपनों को कैसे साकार करें। उनकी यात्रा न सिर्फ उनके लिए, बल्कि उन लाखों युवा, खासकर युवतियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है, जो सोचते हैं कि राजनीति उनकी पहुँच से बाहर है।

मैथिली ठाकुर का यह अनूठा संगम संगीत, संस्कृति और युवा नेतृत्व उन्हें भारतीय राजनीति में एक नई दिशा देने वाला चेहरा बनाता है। हमें उम्मीद है कि उनका भविष्य न सिर्फ उनके लिए, बल्कि उसके इलाके और पूरे मिथिला-क्षेत्र के लिए सकारात्मक परिवर्तन लेकर आएगा।

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